पेज

सोमवार, 17 सितंबर 2012

साठ का आदमी

आदमी की उम्र जब हो जाती है साठ
जिन्दगी पढ़ाती है उसे एक नया पाठ
कल तक था जिनका साथ
छूटने लगता है आज उनका हाथ
आदमी जब हो जाता है साठ का
सुनाने का बहुत रहता है उसके पास
पर सुनने को नही रहता कोई पास
एक लम्बी उम्रका घटा जमा
पीढ़ी की दरार में जाता है समा
उम्र के पठार पर खड़ा है
साठ की उम्र का आदमी
अपनी तृप्त अतृप्त इच्छाओं के
साथ है साठ का आदमी
ऑखों में अब नींद है  सपनें
बेगाने हो गए सारे अपनें
आदमी जब साठ का होता है
रह जाता है बस थोड़ा टहलना
और थोड़ी बड़बड़ाहट।

रविवार, 16 सितंबर 2012

दर्द किसी से मत कहो

दर्द जब
सहन और बर्दास्त से
हो जाए बाहर
तो उसे व्यक्त कर दो
मगर सवाल ये है
कि कहे तो किससे कहे !
इंसान है संग दिल
और दीवारो के सिर्फ़ कान ही नहीं
हज़ारों ज़ुबान भी है
जहाँ से निकल कर दर्द
कहकहा बन कर
हवाऒं में लगता है गूंजने
और कानो में पिघले हुए
शीशे की तरह गिर कर
बढ़ा देते है दर्द ।
रहम किसी के पास नहीं है
और हमदर्दी की फ़िजूलखर्ची
कोई करता नहीं,
दर्द को लफ़्ज दो
और क़ैद कर लो पन्नों पर,
जितना सह सकते हो सहो
पर दर्द किसी से मत कहो ।
                             

शनिवार, 16 जून 2012

सच


सच छल है, सच प्रपंच है।
सच झूठ का खुला मंच है॥
सच धोखा है,सच आवारा है ।
सच मीठा नहीं, बस खारा है॥
सच के हाथ नहीं, न ही सच के पैर है।
सच अपना नहीं, सच केवल ग़ैर है।
सच को ढ़ूंढ रहे कुछ सच्चे लोग।
सच की छाया से खेल रहे लोग