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सोमवार, 17 सितंबर 2012

साठ का आदमी

आदमी की उम्र जब हो जाती है साठ
जिन्दगी पढ़ाती है उसे एक नया पाठ
कल तक था जिनका साथ
छूटने लगता है आज उनका हाथ
आदमी जब हो जाता है साठ का
सुनाने का बहुत रहता है उसके पास
पर सुनने को नही रहता कोई पास
एक लम्बी उम्रका घटा जमा
पीढ़ी की दरार में जाता है समा
उम्र के पठार पर खड़ा है
साठ की उम्र का आदमी
अपनी तृप्त अतृप्त इच्छाओं के
साथ है साठ का आदमी
ऑखों में अब नींद है  सपनें
बेगाने हो गए सारे अपनें
आदमी जब साठ का होता है
रह जाता है बस थोड़ा टहलना
और थोड़ी बड़बड़ाहट।

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